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आल्हा में *अलंकार सीखें और छंद में -समावेश करें-* बिंदु प्रसाद रिद्धिमा*

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 विषय *आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए ऐसा करें*------ मां शारदे को नमन🙏🙏  कलम की सुगंध छंदशाला मंच को नमन🙏🙏  **1**  *कलम की सुगंध छंद शाला से जुड़े* *2* *आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात जी के साथ साथ समीक्षक समूह के वरिष्ठ रचनाकारों के छंदों को पढ़ें और समझे* *3* *मात्रा भार और मापनी पर विशेष ध्यान हो*  *4*  *आल्हा छंद वीर रस आधारित छंद है ,वीर शब्द की पर्यायवाची सूची अपने पास रखें।आवश्यकता अनुसार उपयोग करे*  *5*  *आप चयनित विषय का गहन अध्ययन कर उसके साथ सच्चाई पेश करें*  *6*  *लेखनी को लय देकर सृजन करें* *7*  *अलंकार सीखें और छंद में समावेश करें ,कठिन नहीं है* *8* *आदरणीय गुरुदेव जी की आशीष और अपनी सतत् प्रयास से सुंदर छंद लिखकर साहित्य सेवा की जा सकती है* 🙏🙏 धन्यवाद🌹🌹 * बिंदु प्रसाद रिद्धिमा* *राँची, झारखंड*

आल्हा छंद में लय और मिठास ही पहचान - आशा शुक्ला "कृतिका"

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 आल्हा शतकवीर में आल्हा छंद के बारे में कुछ शब्द--  आल्हा एक ऐसी विधा है जिसमे हमारे ग्रामीण जीवन की आत्मा बसी है। चतुर्मास के दिनों में गांँव की हर चौपाल से उठती आल्हा की आवाजें मन प्राण को प्रफुल्लित कर देती थीं।  आज पुनः उसी छंद को लिखने से ऐसा लगता है जैसे हम अपने उसी ग्रामीण जीवन में पहुंँच गए हैं। देसी कलेवर ,,,मिट्टी की सोंधी खुशबू वाले इस अनुपम छंद को लिखने में हर्ष और गर्व की अनुभूति हो रही है कि मैं ,,,,कलम की सुगंध छंद शाला,, से जुड़ी हूंँ जहां नित्य प्रति छंदों के नव कलेवर और सच्चे स्वरूप के बारे में सिखाया जाता है। इस छंद का विधान थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन परिष्कृत रूप में जब यह बनता है तो इसकी मिठास और लय  देखते ही बनती है।  🌺🌺धन्यवाद कलम की सुगंध छंदशाला🌺🌺

आल्हा छंद में अतिरेकी अभिव्यंजनाएँ है मौलिक गुण - अर्चना पाठक निरन्तर

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 आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए किया जाने वाला प्रयास छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक लोकप्रिय छंदों में गणनीय आल्हा या वीरछंद को इतिहास में महती भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले और इस छंद ने जहाँ मातृभूमि के रक्षार्थ जूझ रहे नर नारियों में प्राण उत्सर्ग का भाव भरा,  वहीं शत्रुओं के मन में मौत का भय पैदा किया । गाँव-गाँव में चौपालों पर सावन के पदार्पण के साथ ही आल्हा गायकों की टोलियाँ ढोल- मंजीरा के साथ आल्हा गाती हैं ।प्राचीन काल में युद्धों के समय सेना में शांति काल में दरबारों में तथा दैनंदिन जीवन में गाँवों में अल्हैत होते थे जो अपने राज्य ,सेना प्रमुख अथवा किसी महावीर कीर्ति का बखान आल्हा गाकर करते थे। इससे जवानों में लड़ने का जोश बढ़ता, जान की बाजी लगाने की भावना पैदा होती थी ।शत्रु सेना के उत्साह में कमी आती थी ।       इस छंद का' यथा नाम तथा गुण' की तरह इसके कार्य ओज भरे होते हैं सुनने वाले के मन में उत्साह और उत्तेजना पैदा करते हैं ।अतिरेकी अभिव्यंजनाएँ इस छंद का दोष न होकर मौलिक गुण हो जाता है। आल्हा  में अतिशयोक्ति अलंकार का विशाल भंडार है।   ...

आल्हा छंद में विधान और गेयता महत्वपूर्ण- अनिता मंदिलवार "सपना"

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 कलम की सुगंध छंदशाला   * आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए कुछ ऐसा करें-----*  आल्हा छंद को ही वीर छंद के नाम से जाना जाता है । इससे यही समझ में आता है कि इसमें वीर रस की प्रधानता होती है और कथ्य अक्सर ओज भरे होते हैं जो सुनने वाले के मन में उत्साह और उत्तेजना उत्पन्न करते हैं  । इसका शिल्प जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है । इसमें अतिशयोक्तिपूर्ण अभिव्यंजनाएँ इस छंद का मौलिक गुण हो जाती है ।      इस छंद की विशिष्टता वस्तुतः उसका विधान और उसकी गेयता होती है । रचनाकार को कथ्य उसी अनुसार लेना चाहिए । उदाहरण देखिए --- आल्हा  छंद  तलवार उठाकर हाथों में , रानी शक्ति बनी साकार । रुप देख सभी थर थर  काँपे, धरती मर्दानी आकार ।। सुत को बाँधा जो पीठ वही, वो दौड़ रही चारों ओर । छूटे छक्के गोरों के तो, आप नहीं कुछ उनका जोर ।। अनिता मंदिलवार "सपना"  (व्याख्याता, साहित्यकार) मंच संचालिका  कलम की सुगंध छंदशाला
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 🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉 ~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा .       🌼 *कह दी चुभती बात* 🌼 .                    (दोहा-छंद) .                       💫💫 कुछ कवि  ऐसे मित्र हैं, जिनके लिए  विशेष। सबके हित को लिख रहा,बात नेक बिन द्वेष।। .                          💫 सुधि कवियों से नेह से, करूँ एक मनुहार। दूजों की  रचना पढ़ें, शब्द लिखें  दो चार।। .                           💫 करें मान नहीं और का, चाहे खुद सम्मान। बिना घिसे चन्दन नहीं ,देता गन्ध  सुजान।। .         ..                💫 सबकी रचना देख कर,दीजे उचित प्रबोध। हर कवि का सम्मान हो,होंगे स्वयं सुबोध।। .                        ...

उल्लाला शतकवीर सृजन 30.03.2021

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[31/03, 10:40] Anita Mandilwar Sapna: [30/03, 19:04] अनिता सु� ��ीर: कलम की सुगन्ध छंदशाला  उल्लाला शतकवीर 2021 दिनांक 30/03 विषय (1) गणेश  प्रथमेश्वर से है प्रार्थना,ज्ञान हमें यह दीजिए। गौरी सुत गणपति देव जी,पूर्ण शतक अब कीजिए।। विषय (2) शारदे माँ वीणापाणी माँ शारदे,चरणों में जयकार है। मति गति नव लय नव कंठ दें,विनती बारम्बार है।। विषय (3) कलम की सुगंध अर्पित करते श्रद्धा सुमन,शाला के इस यत्न को। सौरभ विसरित करती कलम,गढ़ती कितने रत्न को।। विषय (4) गुरु विज्ञात जी गुरुवर कौशिक का स्वप्न है,भाषा ही अभियान हो। सेवा करते निस्वार्थ नित,हिंदी का उत्थान हो ।। विषय (5) स्वयं  परिचित अपने सामर्थ्य से,भावों की है रिक्तता। मिलता गुरुवर सानिध्य जब,रचना में फिर सिक्तता।। अनिता सुधीर आख्या [30/03, 19:17] आरती मेहर: 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ✍️ *कलम की सुगन्ध छंदशाला*:✍️ 🌞 *उल्लाला शतकवीर 202* 🌞 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 विषय ( 1 ) गौरी नंदन लघु सुत बने , देवा प्रथम गणेश जी l कार्तिक उनका भाई बड़ा, भोला पिता महेश जी ll °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° विषय ( 2 ) वंदन देवी माँ शार...

कलम की सुगंध के संस्थापक गुरूदेव संजय कौशिक विज्ञात जी का जन्मदिन का उत्सव मनाया गया और उल्लाला छंद शतकवीर 2021 का उद्घाटन सत्र संपन्न

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 [28/03, 12:23] Anita Mandilwar Sapna: आप सभी को जानकर हर्ष होगा कि  होली के दिन अर्थात राष्ट्रीय अवकाश के दिन  दोपहर में 12:15 मिनट पर उल्लाला छंद पर विशेष समर्पित कार्यक्रम *उल्लाला - शतकवीर कलम की सुगंध सम्मान-2021* के उद्घाटन समारोह के आयोजन का समय निश्चित हुआ है इस सत्र का शुभारम्भ डॉ. अनिता भारद्वाज अर्णव जी अर्णव कलश एसोसिएशन राष्ट्रीय महासचिव मुख्यातिथि की उपास्थिति में होगा कार्यक्रम की अध्यक्षता संचालक अनिता मंदिलवार सपना जी करेंगी। विशिष्ट अतिथि राजलक्ष्मी पाण्डेय जी संचालक कविता माला और नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी संचालक नवगीत माला, तथा नरेश कुमार जगत 'प्रज्ञ', संचालक हाइकु विश्वविद्यालय धर्मराज देशराज संचालक महफ़िल ए ग़ज़ल, अर्चना पाठक निरन्तर जी, संचालक विश्व साहित्य नारी कोष          की विशेष उपास्थिति के मध्य होगा। कलम की सुगंध छंदशाला मंच पर 12: 15 मिनट पर गणेश जी और माँ वीणापाणि की स्थापना की जाएगी।  दीप प्रज्ज्वलन का समय 12: 17 मिनट पर मुख्यातिथि महोदया आदरणीया डॉ. अनिता भारद्वाज अर्णव जी के कर कमलों से होगा माल्यार्पण अध्यक्ष महोद...

नहीं आते आग लगाते हैं जीवन में, पर बुझाने नहीं आते । शजर जब सूख जाता है, परिंदे चहचहाने नहीं आते ।। ज़ख्म हरा करते हैं पर, मरहम लगाने नहीं आते । बात बात पर रूठने वाले, कभी मनाने नहीं आते ।। रहते हैं रोशनी में जो, मन सहलाने नहीं आते । झोपड़ियों के द्वारे पर, कभी दीप जलाने नहीं आते ।। सपना दिखलाते हैं जो, सपनों में नहीं आते । अपने कहलाते हैं जो , अपनत्व दिखाने नहीं आते । अनिता मंदिलवार "सपना"

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आप सभी स्वागत है।
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 *है कहाँ जिंदा ईमान अब ?* गर्दिशों में है पहचान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? कुरीतियाँ खड़ी मुँह उठाये सन्नाटे के मंजर क्यों छाये कहाँ से हौसले अब लाये है धुआँ धुआँ आसमान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? व्यस्त हैं आज यहाँ सभी बच्चे बचे नहीं भावना अब सच्चे दोस्ती, रिश्ते नाते सभी कच्चे अपमानित होता सम्मान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? घर में बेटियाँ लाचार क्यों बेटी पर हो अत्याचार क्यों बेटी से गलत वयवहार क्यों शैतान बनता क्यों इंसान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? अब वही जमाना रहा नहीं सच कहा किसी ने सुना नहीं सिलसिला आगे बढ़ा नहीं खोते होठों से मुस्कान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ?  *अनिता मंदिलवार "सपना"*
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दिनाँक - 3/02/2020 दिन - सोमवार विषय - *पशुधन* विधा - दोहा छंद गौ की सेवा से हुआ, जीवन का उद्धार। दूध दही नवनीत है, भोजन के आधार।। गौ की रक्षा जो करे, होगा बेड़ा पार। वैतरणी ही वो तरेे, जो जीवन का सार।। गौ धन है सबसे बड़ा, धन से मत तू तोल। भवसागर से तार दे, दिल की आँखे खोल।। गोबर डालो खेत में ,है यह अच्छी खाद। स्वस्थ फसल तैयार हो, पक जाने के बाद।। गैया  संगत  खेलते,  होते सदा विभोर।  माखन नित ही खा रहे, देखो माखन चोर।। ✒ राधा तिवारी "राधेगोपाल" खटीमा ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड
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देश की हुंकार* जय जननी भारत, जन मन अभिमत, देश हित वीरवर, बोलियाँ सुनाइए । राष्ट्र गान जन मन, गाते मिल सब जन, ऊँचे आसमान पर, ध्वज फहराइए । जय जवान बोल कर, मन सारा खोल कर, वंचितों का मान रख, कर्तव्य निभाइए । देश की हुंकार जब, सुनते हैं तब सब, जात पात भूल कर, देश राग गाइए । *अनिता मंदिलवार सपना*
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माहिया छंद (टप्पा ) 222222-12 22222-10 222222-12 1/सावन देखो आया  प्रियतम मेरे सुन मेरा मन हर्षाया l 2/रिमझिम रिमझिम बरसे जल इन अँखियों से बदरी कोई तरसे l 3/हर आहट पे लागे जैसे तुम आये  मनवा सुन के जागे l 4/मन मेरा यूँ तड़पे तेरा कहना मुझसे कल आऊंगा तड़के l 5/सोलह श्रृंगार करूं बैठ थकूं सजना आने की आस भरूं l 6/अब संग मुझे  जीना चाहूँ साथ सदा गम हँस के पीना l 7/चाहूँ दिल में रहना धड़कन बन तेरी साँसो में है बहना l 8/अब नैनों में बसना  देखूँ जब तुझको  मन हो मेरा रसना l 9/साजन मेरे सजना अब तो है मुझको जीवन भर सजना l 10/अब काहे को डरना  बिन तेरे जीना जीते जी है मरना l सरोज दुबे रायपुर छत्तीसगढ़ 🙏🙏🙏🙏
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अपने प्रिय जनों को समर्पित--- *अपने* सब मिलकर रहें, पूर्ण करें सब *काम*। *काम* विकारों से परे, *धाम* वही सुख *धाम* *धाम* वही सुख *धाम*, पुष्प सा होता *विकसित* *विकसित* हो परिवार, नहीं वे होते *व्यवसित* *व्यवसित* कवि के भाव, लगे हों मानो *तपने* *तपने* लगते गैर, शांति पाते हैं *अपने* संजय कौशिक 'विज्ञात' काम - कार्य, काम विकार धाम - घर , तीर्थ विकसित - खिला हुआ , विकास व्यवसित संस्कृत शब्द विशेषण  से अर्थ क्रमानुसार  - धैर्यवान , तत्पर बनते हैं संज्ञा से क्रमानुसार - छल, निर्धारण बनते हैं तपने - तपस्या, तप्त/ गर्म  होना
अपने प्रिय जनों को समर्पित--- *अपने* सब मिलकर रहें, पूर्ण करें सब *काम*।  *काम* विकारों से परे, *धाम* वही सुख *धाम* *धाम* वही सुख *धाम*, पुष्प सा होता *विकसित*  *विकसित* हो परिवार, नहीं वे होते *व्यवसित*  *व्यवसित* कवि के भाव, लगे हों मानो *तपने*  *तपने* लगते गैर, शांति पाते हैं *अपने* संजय कौशिक 'विज्ञात'  काम - कार्य, काम विकार धाम - घर , तीर्थ  विकसित - खिला हुआ , विकास व्यवसित संस्कृत शब्द विशेषण  से अर्थ क्रमानुसार  - धैर्यवान , तत्पर बनते हैं संज्ञा से क्रमानुसार - छल, निर्धारण बनते हैं  तपने - तपस्या, तप्त/ गर्म  होना
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दोहा में त्रिकल का महत्व:- त्रिकल पंचकल पूर्व लें, उत्तम बने प्रवाह। पाठक पढ़ कर कह उठे, अच्छा है ये वाह॥ त्रिकल सहित लो दो जगण, रखो द्विकल का भार। चरण जगण अवरुद्धता, दोष मुक्ति का सार॥ तीन त्रिकल लेना नहीं, कभी एक ही साथ। दोहा लय श्रोता सुनें, खूब बजाएं हाथ॥ अगर त्रिकल ले रहे, किसी चरण में आप। उसे अकेला मत कहें, करें युग्ल आलाप॥ त्रिकल एक चौकल लिखा, लय बाधित का ज्ञान। खड़ा रहे अवरोध तो, कैसा शिल्प विधान संजय कौशिक 'विज्ञात'
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#दिनांक 👉 26/11/2019 #रस 👉 #शांत_रस #विधा 👉 #दोहा-छन्द """""""""""""""""""""""""""""""""""""""" जिसके अंतर्मन बसा, मानवता का रूप। जग में नित करता भला, होता ईश स्वरूप।।०१।। बड़े भाग तन मनुज का, मिले सुखों का भोग। सत्संगति मिलती तभी, हो अच्छा संयोग।।०२।। सब घट वासी राम को, जाने संत सुजान। समदर्शी बनता वही, जिसे है आत्मज्ञान।।०३।। अपने घट की जान लो, मत भटको चहुँ ओर। ईश्वर हर घट में बसे, घट में ही है चोर।।०४।। तन की चाल सुधार लो, मन का मेटो खोट। जो वाणी वस में रखे, उसे प्रभो की ओट।।०५।। बाहर भटके से कभी, मिलें नहीं भगवान। अपनी करनी देख ले, अंतर्मन को जान।।०६।। घट की बातें सब करें, देख न पावे कोय। कैसे अन्तर्जगत में, भला बुरा सब होय।।०७।। धर्मवान हो बाप जी, गुणवंती हो नार। कर्मशील संतान हो, सुखी रहे परिवार।।०८।। व्यर्थ कभी मत खोइए, जीवन है अनमोल। अंतर्मन में द...
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दिनांक:-14/11/2019 दिवस:- बुधवार(बाल दिवस) विधा:- चौपाई छंद *!!बचपन!!* 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 बचपन अब इठलाता घूमे। चलती दुनियाँ में वो झूमे।। मोबाइल से हेत लगा है।   गूगल उसका आज सगा है। नहीं सुने अब प्यारी लोरी। करे न माखन की अब चोरी।। नहीं खेलता मीत संग में। नेट बसा अब अंग अंग में।। बचपन सुने न रात कहानी। अब तो मोबाइल है नानी।। बड़ा हुआ अब पीते-खाते। संस्कार सब भूलते जाते।। ये तो हुई महल की बातें। सुनो झोंपडी की अब रातें।। दीन हीन घर पैदा होकर। खावे बचपन दर दर ठोकर।। हृदय प्रेम का सागर भारी। भरी मोती से चक्षु झारी।। निश्छलता बसती है मन में। फिर भी काँटे हैं जीवन में।। हे! रब कैसी ये मजबूरी। बचपन सुख से कितनी दूरी।। उथल-पुथल मय जीवन सारा। कहाँ भटकता बचपन प्यारा।। भारत भाग्य कहाँ सोता है। छिपकर के बचपन रोता है। भूख पेट की बड़ी सयानी। कर दे बचपन पानी-पानी।। सुनो योजना संसद पन्ने। बचपन हित होवो चौकन्ने।। आँचल कंधा तुम भी जानो। उस बचपन के दिल की मानो।। कहे 'सुमा' दिल से ये बातें। जाग न पाए बचपन रातें। मानव हो मानवता धरना। बचपन हित में क...
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विशिष्ट सृजन, पूरा पढ़ें प्रतिक्रिया अपेक्षित है🙏 🌕🤴🌕🤴🌕🤴🌕🤴🌕🤴 ~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा .                    (रोला छंद) .         🦅  *चंद्र,  इन्द्र ....हम*  🦅 .                 🌕...🤴....🌍 .                   ✨✨✨ चंद्र  इंद्र  नभ  देव, सदा शुभ  पूज्य  हमारे। हम  पर  रहो प्रसन्न, रखो आशीष  तुम्हारे। लेकिन मन के भाव, लेखनी सच्चे लिखती। देव दनुज नर सत्य, कमी बेशी जो दिखती। .                   ✨✨✨ क्षमा सहित  द्वय देव, पुरानी  बात  सुनाऊँ। लिखता  रोला  छंद, भाव कुछ  नये बताऊँ। शर्मा  बाबू  लाल, सुनी  वह   तुम्हे  सुनाता। बीत गया युग काल, याद फिर से आजाता। .                   ✨✨✨ ...
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महात्मा गाँधी बापू *!!रोला छंद!!* ******************************** खुशी रहो सब आज, जयंती गाँधी जी की। मने जयंती संग, सदा ही शास्त्री जी की।। जन्मे वीर सपूत, यही था दिन वो पावन। जयतु भारती मात, दिए दो पूत लुभावन।। रखिये उनको याद, नमन करना मत भूलो। ले आजादी फूल, सदा मन में अब झूलो।। ऐसे वीर महान, हुए इस भारत भू पर। जीवन ये कुर्बान, किया मन में खुश हो कर।। चले सत्य के पंथ, अहिँसा के व्रत धारी। भगा फिरंगी लाज, बचाई तभी हमारी।। गाँधी जैसे पूत, बने सबके रखवाले। देश प्रेम हित छोड़, चले थे सब घरवाले।। लिया सत्य का साथ, करे आन्दोलन भारी। सुख साधन सब छोड़, हटाया सूट सफारी।। भारत माँ के काज, दिनों दिन कष्ट सहे। इसके खातिर देख, पिता जी जेल रहे।। थर थर काँपे राज, डरे अंग्रेजी सारे। देख सत्य का जोर, सभी वो मन से हारे।। जान गाय था विश्व, सत्य में ताकत भारी। बापू से ही आज, बनी पहचान हमारी।। भारत के सरताज, बने गाँधी जी प्यारे। हम सब ही संतान, पिता वो बने हमारे।। 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 *✍© प्रजापति कैलाश 'सुमा'* ढिगारिया कपूर, मेहन्दीपुर बालाजी, दौसा, राजस्थ...
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*!!नवरात्रा!!* ~दोहा छंद~ 🌹🔥🔥🔥👏🏻🔥🔥🔥🌹 हे! महिषासुर मर्दिनी, शूलधारिणी मात। महातपा सुरसुंदरी, नाम बड़े विख्यात।। मात भवानी अम्बिके, दुर्गा रूप अनेक। वन्दन माँ तेरा करूँ, चरणों माथा टेक।। शेरावाली आज तो, आना मेरे द्वार। शीश हाथ रख दीजिए, मेरी यही पुकार।। आदि भवानी आप हो, इस जग की करतार। हम सेवक भोले सभी, करिये नौका पार।। आओ माँ विनती करें, सजा आज दरबार। दर्शन दो माँ चंडिका, सबके कष्ट निवार।। नौ रातों के रूप को, करता कोटि प्रणाम। जीवन परहित में लगे, रहे यही बस काम।। हर बेटी दुर्गा समा, जग में बने महान। रहे सुरक्षित हर जगह, इतना दो वरदान।। मैं खोटा किंकर सदा, आप सुधारो काज। कहे 'सुमा' जग में रखो, माता मेरी लाज।। 🌹🔥🔥🔥👏🏻🔥🔥🔥🌹 *✍प्रजापति कैलाश 'सुमा'* ढिगारिया कपूर, मेहन्दीपुर बालाजी, दौसा, राजस्थान।