#दिनांक 👉 26/11/2019
#रस 👉 #शांत_रस
#विधा 👉 #दोहा-छन्द

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जिसके अंतर्मन बसा, मानवता का रूप।
जग में नित करता भला, होता ईश स्वरूप।।०१।।

बड़े भाग तन मनुज का, मिले सुखों का भोग।
सत्संगति मिलती तभी, हो अच्छा संयोग।।०२।।

सब घट वासी राम को, जाने संत सुजान।
समदर्शी बनता वही, जिसे है आत्मज्ञान।।०३।।

अपने घट की जान लो, मत भटको चहुँ ओर।
ईश्वर हर घट में बसे, घट में ही है चोर।।०४।।

तन की चाल सुधार लो, मन का मेटो खोट।
जो वाणी वस में रखे, उसे प्रभो की ओट।।०५।।

बाहर भटके से कभी, मिलें नहीं भगवान।
अपनी करनी देख ले, अंतर्मन को जान।।०६।।

घट की बातें सब करें, देख न पावे कोय।
कैसे अन्तर्जगत में, भला बुरा सब होय।।०७।।

धर्मवान हो बाप जी, गुणवंती हो नार।
कर्मशील संतान हो, सुखी रहे परिवार।।०८।।

व्यर्थ कभी मत खोइए, जीवन है अनमोल।
अंतर्मन में देख कर, मन की गाँठें खोल।।०९।।

लेना अब संकल्प तुम, करना अच्छा काज।
सद्कर्मों से ही मिले, जीवन में सब राज।।१०।।

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पूर्णतः स्वरचित व स्वप्रमाणित

रचनाकार
✍️ प्रजापति कैलाश 'सुमा'
ढिगारिया कपूर, मेहन्दीपुर बालाजी, दौसा, राजस्थान।

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