दोहा में त्रिकल का महत्व:-

त्रिकल पंचकल पूर्व लें, उत्तम बने प्रवाह।
पाठक पढ़ कर कह उठे, अच्छा है ये वाह॥

त्रिकल सहित लो दो जगण, रखो द्विकल का भार।
चरण जगण अवरुद्धता, दोष मुक्ति का सार॥

तीन त्रिकल लेना नहीं, कभी एक ही साथ।
दोहा लय श्रोता सुनें, खूब बजाएं हाथ॥

अगर त्रिकल ले रहे, किसी चरण में आप।
उसे अकेला मत कहें, करें युग्ल आलाप॥

त्रिकल एक चौकल लिखा, लय बाधित का ज्ञान।
खड़ा रहे अवरोध तो, कैसा शिल्प विधान

संजय कौशिक 'विज्ञात'

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