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 *है कहाँ जिंदा ईमान अब ?* गर्दिशों में है पहचान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? कुरीतियाँ खड़ी मुँह उठाये सन्नाटे के मंजर क्यों छाये कहाँ से हौसले अब लाये है धुआँ धुआँ आसमान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? व्यस्त हैं आज यहाँ सभी बच्चे बचे नहीं भावना अब सच्चे दोस्ती, रिश्ते नाते सभी कच्चे अपमानित होता सम्मान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? घर में बेटियाँ लाचार क्यों बेटी पर हो अत्याचार क्यों बेटी से गलत वयवहार क्यों शैतान बनता क्यों इंसान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? अब वही जमाना रहा नहीं सच कहा किसी ने सुना नहीं सिलसिला आगे बढ़ा नहीं खोते होठों से मुस्कान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ?  *अनिता मंदिलवार "सपना"*
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दिनाँक - 3/02/2020 दिन - सोमवार विषय - *पशुधन* विधा - दोहा छंद गौ की सेवा से हुआ, जीवन का उद्धार। दूध दही नवनीत है, भोजन के आधार।। गौ की रक्षा जो करे, होगा बेड़ा पार। वैतरणी ही वो तरेे, जो जीवन का सार।। गौ धन है सबसे बड़ा, धन से मत तू तोल। भवसागर से तार दे, दिल की आँखे खोल।। गोबर डालो खेत में ,है यह अच्छी खाद। स्वस्थ फसल तैयार हो, पक जाने के बाद।। गैया  संगत  खेलते,  होते सदा विभोर।  माखन नित ही खा रहे, देखो माखन चोर।। ✒ राधा तिवारी "राधेगोपाल" खटीमा ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड