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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. 🌼 *कह दी चुभती बात* 🌼
. (दोहा-छंद)
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कुछ कवि ऐसे मित्र हैं, जिनके लिए विशेष।
सबके हित को लिख रहा,बात नेक बिन द्वेष।।
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सुधि कवियों से नेह से, करूँ एक मनुहार।
दूजों की रचना पढ़ें, शब्द लिखें दो चार।।
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करें मान नहीं और का, चाहे खुद सम्मान।
बिना घिसे चन्दन नहीं ,देता गन्ध सुजान।।
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सबकी रचना देख कर,दीजे उचित प्रबोध।
हर कवि का सम्मान हो,होंगे स्वयं सुबोध।।
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अपना सृजन बखानते,और सृजक बेकार।
वाह वाह खुद ही चहे, अन्य नहीं स्वीकार।।
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अपने सृजन निखारिए,सबको लेके साथ।
एक हाथ से दीजिए, मिले दूसरे हाथ।।
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स्रोता सच्चा पारखी, पाठक ज्ञान सुजान।
पाठक स्रोता जो नहीं, उनके घट अज्ञान।।
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गुरुजन से आशीष ले,लघुजन को दें नेह।
उभय पक्ष सम्मान है,उजले मन अरु देह।।
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है समूह का ध्येय यह,शीश पटल पर भ्रात।
सबका सबसे हित सधे,लाख टके की बात।।
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क्षमा सहित की प्रार्थना,सबको अपने जान।
बुरा लगे तब भूलना , समझ मान अज्ञान।।
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परिजन प्रियजन से सभी, शीश पटल के भ्रात।
मन की मन में क्यों रखूँ, कह दी चुभती बात।।
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✍🙏©
*बाबू लाल शर्मा "बौहरा"*
*सिकन्दरा,दौसा,राजस्थान*
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सार्थक, सटीक ,अति सुंदर सृजन आदरणीय..सच हमेशा कड़वा ही लगता है ,परंतु सत्य सय ही रहता है..सभी की रचनाएं..पढने से ज्ञानार्जन ही होता है और प्रशंसा से लेखक का मनोबल बढ़ता है
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा
ReplyDeleteबहुत सही और सटीक है चुभती है तो चुभने दिजिए।
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन।
नमन आपकी लेखनी को।
शारदा स्वयं बैठी है।