आल्हा छंद में अतिरेकी अभिव्यंजनाएँ है मौलिक गुण - अर्चना पाठक निरन्तर


 आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए किया जाने वाला प्रयास


छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक लोकप्रिय छंदों में गणनीय आल्हा या वीरछंद को इतिहास में महती भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले और इस छंद ने जहाँ मातृभूमि के रक्षार्थ जूझ रहे नर नारियों में प्राण उत्सर्ग का भाव भरा,  वहीं शत्रुओं के मन में मौत का भय पैदा किया । गाँव-गाँव में चौपालों पर सावन के पदार्पण के साथ ही आल्हा गायकों की टोलियाँ ढोल- मंजीरा के साथ आल्हा गाती हैं ।प्राचीन काल में युद्धों के समय सेना में शांति काल में दरबारों में तथा दैनंदिन जीवन में गाँवों में अल्हैत होते थे जो अपने राज्य ,सेना प्रमुख अथवा किसी महावीर कीर्ति का बखान आल्हा गाकर करते थे। इससे जवानों में लड़ने का जोश बढ़ता, जान की बाजी लगाने की भावना पैदा होती थी ।शत्रु सेना के उत्साह में कमी आती थी । 

     इस छंद का' यथा नाम तथा गुण' की तरह इसके कार्य ओज भरे होते हैं सुनने वाले के मन में उत्साह और उत्तेजना पैदा करते हैं ।अतिरेकी अभिव्यंजनाएँ इस छंद का दोष न होकर मौलिक गुण हो जाता है। आल्हा  में अतिशयोक्ति अलंकार का विशाल भंडार है।


     किसी पात्र के जीवन वृत का चित्रण मूल रूप में आल्हा छंद में करें और इसे और आकर्षक बनाने के लिए आल्हा छंद के प्रारंभ में दोहा ,रोला, चौपाई ,गुरुदेव जी द्वारा निर्मित कोई उपनाम आधारित छंद या मनहरण घनाक्षरी का प्रयोग कर सकते हैं।आल्हा छंद के बीच -बीच में  दोहा, रोला, चौपाई आदि का प्रयोग करें तो इसमें लय बदलेगा। थोड़ा ठहराव और लय परिवर्तन पश्चात् पुन:आल्हा छंद लिखने से वाचन में लालित्य बढ़ेगा।

      यदि चाहें तो हम अलग-अलग छंदों का प्रयोग कर और आकर्षक बना सकते हैं।

 संस्कृत वांग्मय से वीर काव्य परंपरा ग्रहण कर हिंदी में रचित पारंपरिक आल्हा छंद में दो -दो पंक्तियाँ तुकांत होती हैं। तुकांत संबंधी विविध प्रयोग किए जा सकते हैं इनसे छंद की लय कथ्य आदि पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता आल्हा मुक्तक ,आल्हा गीत, आल्हा ग़ज़ल, आल्हा फाग,आल्हा बाल गीत की भी रचना कर सकते हैं।


अर्चना पाठक 'निरंतर'

Comments

  1. हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  2. महत्त्वपूर्ण जानकारी
    सरल व सहज शब्दों में..
    शुभकामनाएं 🙏🏻

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog