अपने प्रिय जनों को समर्पित---
*अपने* सब मिलकर रहें, पूर्ण करें सब *काम*।
*काम* विकारों से परे, *धाम* वही सुख *धाम*
*धाम* वही सुख *धाम*, पुष्प सा होता *विकसित*
*विकसित* हो परिवार, नहीं वे होते *व्यवसित*
*व्यवसित* कवि के भाव, लगे हों मानो *तपने*
*तपने* लगते गैर, शांति पाते हैं *अपने*
संजय कौशिक 'विज्ञात'
काम - कार्य, काम विकार
धाम - घर , तीर्थ
विकसित - खिला हुआ , विकास
व्यवसित संस्कृत शब्द विशेषण से अर्थ क्रमानुसार - धैर्यवान , तत्पर बनते हैं संज्ञा से क्रमानुसार - छल, निर्धारण बनते हैं
तपने - तपस्या, तप्त/ गर्म होना
*अपने* सब मिलकर रहें, पूर्ण करें सब *काम*।
*काम* विकारों से परे, *धाम* वही सुख *धाम*
*धाम* वही सुख *धाम*, पुष्प सा होता *विकसित*
*विकसित* हो परिवार, नहीं वे होते *व्यवसित*
*व्यवसित* कवि के भाव, लगे हों मानो *तपने*
*तपने* लगते गैर, शांति पाते हैं *अपने*
संजय कौशिक 'विज्ञात'
काम - कार्य, काम विकार
धाम - घर , तीर्थ
विकसित - खिला हुआ , विकास
व्यवसित संस्कृत शब्द विशेषण से अर्थ क्रमानुसार - धैर्यवान , तत्पर बनते हैं संज्ञा से क्रमानुसार - छल, निर्धारण बनते हैं
तपने - तपस्या, तप्त/ गर्म होना
अति सुंदर सृजन आदरणीय
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन आपकी लेखनी को नमन आदरणीय
ReplyDeleteजी लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना ....खूबसूरत शाब्द चयन, भाव और अलग अंदाज कुण्डलिया में चार चाँद लगा रहे है। ....इस अनोखी कुण्डलिया सृजन की बहुत बहुत बधाई 💐💐💐💐
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सर जी बधाई हो
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