दिनांक:-14/11/2019
दिवस:- बुधवार(बाल दिवस)
विधा:- चौपाई छंद
*!!बचपन!!*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
बचपन अब इठलाता घूमे।
चलती दुनियाँ में वो झूमे।।
मोबाइल से हेत लगा है।
गूगल उसका आज सगा है।
नहीं सुने अब प्यारी लोरी।
करे न माखन की अब चोरी।।
नहीं खेलता मीत संग में।
नेट बसा अब अंग अंग में।।
बचपन सुने न रात कहानी।
अब तो मोबाइल है नानी।।
बड़ा हुआ अब पीते-खाते।
संस्कार सब भूलते जाते।।
ये तो हुई महल की बातें।
सुनो झोंपडी की अब रातें।।
दीन हीन घर पैदा होकर।
खावे बचपन दर दर ठोकर।।
हृदय प्रेम का सागर भारी।
भरी मोती से चक्षु झारी।।
निश्छलता बसती है मन में।
फिर भी काँटे हैं जीवन में।।
हे! रब कैसी ये मजबूरी।
बचपन सुख से कितनी दूरी।।
उथल-पुथल मय जीवन सारा।
कहाँ भटकता बचपन प्यारा।।
भारत भाग्य कहाँ सोता है।
छिपकर के बचपन रोता है।
भूख पेट की बड़ी सयानी।
कर दे बचपन पानी-पानी।।
सुनो योजना संसद पन्ने।
बचपन हित होवो चौकन्ने।।
आँचल कंधा तुम भी जानो।
उस बचपन के दिल की मानो।।
कहे 'सुमा' दिल से ये बातें।
जाग न पाए बचपन रातें।
मानव हो मानवता धरना।
बचपन हित में कारज करना।।
🖋🖋🖋🖋🖋🖋🖋🖋🖋
रचनाकार
✍प्रजापति कैलाश 'सुमा'
मेहन्दीपुर बालाजी, दौसा, राजस्थान।
बहुत सुंदर सृजन👏👏👏👏👏👏👏👏
दिवस:- बुधवार(बाल दिवस)
विधा:- चौपाई छंद
*!!बचपन!!*
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बचपन अब इठलाता घूमे।
चलती दुनियाँ में वो झूमे।।
मोबाइल से हेत लगा है।
गूगल उसका आज सगा है।
नहीं सुने अब प्यारी लोरी।
करे न माखन की अब चोरी।।
नहीं खेलता मीत संग में।
नेट बसा अब अंग अंग में।।
बचपन सुने न रात कहानी।
अब तो मोबाइल है नानी।।
बड़ा हुआ अब पीते-खाते।
संस्कार सब भूलते जाते।।
ये तो हुई महल की बातें।
सुनो झोंपडी की अब रातें।।
दीन हीन घर पैदा होकर।
खावे बचपन दर दर ठोकर।।
हृदय प्रेम का सागर भारी।
भरी मोती से चक्षु झारी।।
निश्छलता बसती है मन में।
फिर भी काँटे हैं जीवन में।।
हे! रब कैसी ये मजबूरी।
बचपन सुख से कितनी दूरी।।
उथल-पुथल मय जीवन सारा।
कहाँ भटकता बचपन प्यारा।।
भारत भाग्य कहाँ सोता है।
छिपकर के बचपन रोता है।
भूख पेट की बड़ी सयानी।
कर दे बचपन पानी-पानी।।
सुनो योजना संसद पन्ने।
बचपन हित होवो चौकन्ने।।
आँचल कंधा तुम भी जानो।
उस बचपन के दिल की मानो।।
कहे 'सुमा' दिल से ये बातें।
जाग न पाए बचपन रातें।
मानव हो मानवता धरना।
बचपन हित में कारज करना।।
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रचनाकार
✍प्रजापति कैलाश 'सुमा'
मेहन्दीपुर बालाजी, दौसा, राजस्थान।
बहुत सुंदर सृजन👏👏👏👏👏👏👏👏
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