आल्हा छंद में विधान और गेयता महत्वपूर्ण- अनिता मंदिलवार "सपना"
कलम की सुगंध छंदशाला
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आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए कुछ ऐसा करें-----*
आल्हा छंद को ही वीर छंद के नाम से जाना जाता है । इससे यही समझ में आता है कि इसमें वीर रस की प्रधानता होती है और कथ्य अक्सर ओज भरे होते हैं जो सुनने वाले के मन में उत्साह और उत्तेजना उत्पन्न करते हैं । इसका शिल्प जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है । इसमें अतिशयोक्तिपूर्ण अभिव्यंजनाएँ इस छंद का मौलिक गुण हो जाती है ।
इस छंद की विशिष्टता वस्तुतः उसका विधान और उसकी गेयता होती है । रचनाकार को कथ्य उसी अनुसार लेना चाहिए । उदाहरण देखिए ---
आल्हा छंद
तलवार उठाकर हाथों में , रानी शक्ति बनी साकार ।
रुप देख सभी थर थर काँपे, धरती मर्दानी आकार ।।
सुत को बाँधा जो पीठ वही, वो दौड़ रही चारों ओर ।
छूटे छक्के गोरों के तो, आप नहीं कुछ उनका जोर ।।
अनिता मंदिलवार "सपना"
(व्याख्याता, साहित्यकार)
मंच संचालिका
कलम की सुगंध छंदशाला
बहुत सुंदर विचार
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाईयां शुभकामनाएं 🙏🏻