नहीं आते आग लगाते हैं जीवन में, पर बुझाने नहीं आते । शजर जब सूख जाता है, परिंदे चहचहाने नहीं आते ।। ज़ख्म हरा करते हैं पर, मरहम लगाने नहीं आते । बात बात पर रूठने वाले, कभी मनाने नहीं आते ।। रहते हैं रोशनी में जो, मन सहलाने नहीं आते । झोपड़ियों के द्वारे पर, कभी दीप जलाने नहीं आते ।। सपना दिखलाते हैं जो, सपनों में नहीं आते । अपने कहलाते हैं जो , अपनत्व दिखाने नहीं आते । अनिता मंदिलवार "सपना"

 


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