आल्हा छंद में लय और मिठास ही पहचान - आशा शुक्ला "कृतिका"
आल्हा शतकवीर में आल्हा छंद के बारे में कुछ शब्द--
आल्हा एक ऐसी विधा है जिसमे हमारे ग्रामीण जीवन की आत्मा बसी है। चतुर्मास के दिनों में गांँव की हर चौपाल से उठती आल्हा की आवाजें मन प्राण को प्रफुल्लित कर देती थीं।
आज पुनः उसी छंद को लिखने से ऐसा लगता है जैसे हम अपने उसी ग्रामीण जीवन में पहुंँच गए हैं। देसी कलेवर ,,,मिट्टी की सोंधी खुशबू वाले इस अनुपम छंद को लिखने में हर्ष और गर्व की अनुभूति हो रही है कि मैं ,,,,कलम की सुगंध छंद शाला,, से जुड़ी हूंँ जहां नित्य प्रति छंदों के नव कलेवर और सच्चे स्वरूप के बारे में सिखाया जाता है। इस छंद का विधान थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन परिष्कृत रूप में जब यह बनता है तो इसकी मिठास और लय देखते ही बनती है।
🌺🌺धन्यवाद कलम की सुगंध छंदशाला🌺🌺
बहुत ही शानदार विचार
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