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Showing posts from May, 2021

आल्हा में *अलंकार सीखें और छंद में -समावेश करें-* बिंदु प्रसाद रिद्धिमा*

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 विषय *आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए ऐसा करें*------ मां शारदे को नमन🙏🙏  कलम की सुगंध छंदशाला मंच को नमन🙏🙏  **1**  *कलम की सुगंध छंद शाला से जुड़े* *2* *आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात जी के साथ साथ समीक्षक समूह के वरिष्ठ रचनाकारों के छंदों को पढ़ें और समझे* *3* *मात्रा भार और मापनी पर विशेष ध्यान हो*  *4*  *आल्हा छंद वीर रस आधारित छंद है ,वीर शब्द की पर्यायवाची सूची अपने पास रखें।आवश्यकता अनुसार उपयोग करे*  *5*  *आप चयनित विषय का गहन अध्ययन कर उसके साथ सच्चाई पेश करें*  *6*  *लेखनी को लय देकर सृजन करें* *7*  *अलंकार सीखें और छंद में समावेश करें ,कठिन नहीं है* *8* *आदरणीय गुरुदेव जी की आशीष और अपनी सतत् प्रयास से सुंदर छंद लिखकर साहित्य सेवा की जा सकती है* 🙏🙏 धन्यवाद🌹🌹 * बिंदु प्रसाद रिद्धिमा* *राँची, झारखंड*

आल्हा छंद में लय और मिठास ही पहचान - आशा शुक्ला "कृतिका"

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 आल्हा शतकवीर में आल्हा छंद के बारे में कुछ शब्द--  आल्हा एक ऐसी विधा है जिसमे हमारे ग्रामीण जीवन की आत्मा बसी है। चतुर्मास के दिनों में गांँव की हर चौपाल से उठती आल्हा की आवाजें मन प्राण को प्रफुल्लित कर देती थीं।  आज पुनः उसी छंद को लिखने से ऐसा लगता है जैसे हम अपने उसी ग्रामीण जीवन में पहुंँच गए हैं। देसी कलेवर ,,,मिट्टी की सोंधी खुशबू वाले इस अनुपम छंद को लिखने में हर्ष और गर्व की अनुभूति हो रही है कि मैं ,,,,कलम की सुगंध छंद शाला,, से जुड़ी हूंँ जहां नित्य प्रति छंदों के नव कलेवर और सच्चे स्वरूप के बारे में सिखाया जाता है। इस छंद का विधान थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन परिष्कृत रूप में जब यह बनता है तो इसकी मिठास और लय  देखते ही बनती है।  🌺🌺धन्यवाद कलम की सुगंध छंदशाला🌺🌺

आल्हा छंद में अतिरेकी अभिव्यंजनाएँ है मौलिक गुण - अर्चना पाठक निरन्तर

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 आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए किया जाने वाला प्रयास छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक लोकप्रिय छंदों में गणनीय आल्हा या वीरछंद को इतिहास में महती भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले और इस छंद ने जहाँ मातृभूमि के रक्षार्थ जूझ रहे नर नारियों में प्राण उत्सर्ग का भाव भरा,  वहीं शत्रुओं के मन में मौत का भय पैदा किया । गाँव-गाँव में चौपालों पर सावन के पदार्पण के साथ ही आल्हा गायकों की टोलियाँ ढोल- मंजीरा के साथ आल्हा गाती हैं ।प्राचीन काल में युद्धों के समय सेना में शांति काल में दरबारों में तथा दैनंदिन जीवन में गाँवों में अल्हैत होते थे जो अपने राज्य ,सेना प्रमुख अथवा किसी महावीर कीर्ति का बखान आल्हा गाकर करते थे। इससे जवानों में लड़ने का जोश बढ़ता, जान की बाजी लगाने की भावना पैदा होती थी ।शत्रु सेना के उत्साह में कमी आती थी ।       इस छंद का' यथा नाम तथा गुण' की तरह इसके कार्य ओज भरे होते हैं सुनने वाले के मन में उत्साह और उत्तेजना पैदा करते हैं ।अतिरेकी अभिव्यंजनाएँ इस छंद का दोष न होकर मौलिक गुण हो जाता है। आल्हा  में अतिशयोक्ति अलंकार का विशाल भंडार है।   ...

आल्हा छंद में विधान और गेयता महत्वपूर्ण- अनिता मंदिलवार "सपना"

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 कलम की सुगंध छंदशाला   * आल्हा छंद को आकर्षक बनाने के लिए कुछ ऐसा करें-----*  आल्हा छंद को ही वीर छंद के नाम से जाना जाता है । इससे यही समझ में आता है कि इसमें वीर रस की प्रधानता होती है और कथ्य अक्सर ओज भरे होते हैं जो सुनने वाले के मन में उत्साह और उत्तेजना उत्पन्न करते हैं  । इसका शिल्प जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है । इसमें अतिशयोक्तिपूर्ण अभिव्यंजनाएँ इस छंद का मौलिक गुण हो जाती है ।      इस छंद की विशिष्टता वस्तुतः उसका विधान और उसकी गेयता होती है । रचनाकार को कथ्य उसी अनुसार लेना चाहिए । उदाहरण देखिए --- आल्हा  छंद  तलवार उठाकर हाथों में , रानी शक्ति बनी साकार । रुप देख सभी थर थर  काँपे, धरती मर्दानी आकार ।। सुत को बाँधा जो पीठ वही, वो दौड़ रही चारों ओर । छूटे छक्के गोरों के तो, आप नहीं कुछ उनका जोर ।। अनिता मंदिलवार "सपना"  (व्याख्याता, साहित्यकार) मंच संचालिका  कलम की सुगंध छंदशाला
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 🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉 ~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा .       🌼 *कह दी चुभती बात* 🌼 .                    (दोहा-छंद) .                       💫💫 कुछ कवि  ऐसे मित्र हैं, जिनके लिए  विशेष। सबके हित को लिख रहा,बात नेक बिन द्वेष।। .                          💫 सुधि कवियों से नेह से, करूँ एक मनुहार। दूजों की  रचना पढ़ें, शब्द लिखें  दो चार।। .                           💫 करें मान नहीं और का, चाहे खुद सम्मान। बिना घिसे चन्दन नहीं ,देता गन्ध  सुजान।। .         ..                💫 सबकी रचना देख कर,दीजे उचित प्रबोध। हर कवि का सम्मान हो,होंगे स्वयं सुबोध।। .                        ...