~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
पत्र~विधा
. 🐚 *सौतन* 🐚
मेरे प्रिय सखे रचनाधर्मी,
. अशेष स्नेहाशीष🙌🙌🙌
आज मै अपनी पीर कहानी पत्र द्वारा तुम्हें बता रही हूँ। क्योंकि राज सभा में द्रौपदी से भी बदतर स्थिति है मेरी वर्तमान में। अब तो बस श्रीकृष्ण की तरह तुम्हारा ही भरोसा शेष है। इसी आशा और विश्वास से पत्र लिख रही हूँ।ध्यान देना सखे।
मैं हिन्दी (भाषा) हूँ। माँ संस्कृत(भाषा) का मुझे अपार स्नेह व दुलार मिला है। इतना कि दुलार करते करते माँ अब जरावस्था में पहुँच गई । मै स्वतंत्र भारत की राष्ट्र भाषा बन गई हूँ। पर यह इतर बिन्दु है कि अभी तक शासन की ही दोगली नीति के कारण मै वह सम्मान प्राप्त नहीं कर पा रही जिसकी मैं स्वयं अधिकारिणी हूँ।
हालांकि देश की जनता मुझे राजरानी राजमाता सम मानती है पर सरकार के प्रतिनिधि अभी तक सरकारी कार्यालय, कोर्ट कचहरी संसद,विधान सभाओं में अनावश्क रूप से मेरी उपेक्षा करते रहते है।
यहाँ तक कि कुटिल स्वार्थी नेता भाषायी विवाद तथा , झगड़े भड़काने से भी नहीं चूकते।
खैर मैं राष्ट्र भाषा बनी,मेरी लिपि देवनागरी है। मैं स्वयं संसार की श्रेष्ठ सम्पन्न और सुन्दर भाषाओं में सुमान्य हूँ।
भारत वर्ष ही नहीं अपितु पड़ौसी देशों में भी मेरा व मेरी लिपि का बोलबाला है।
जहाँ प्रवासी भारतीय बसते हैं वहाँ उन दूरस्थ देशों मे भी मेरा विस्तार है।
आज मेरे कोष में सम्पन्न साहित्य है ,तथा साहित्य साधको की विशाल सूची है और खूब सम्पन्न शब्द कोष है।और भी सम्पन्नता होती पर इतिहास में हुई मेरी ही गलतियां आज तक मुझे सता रही है।सखे!
मेरा जन्म तो प्राचीन काल मे *हस्तिनापुर* में हुआ परन्तु आयु और यौवन के जोश में मै शीघ्र ही सबकी चहेती होती गई। मेरे चर्चे अखंड भारत में होने लगे। मुझे स्वयं पर गर्व होने लगा। मैने सोचा सेविका रख लूँ । बस यहीं से गलती शुरू हो गई। मैने उर्दू , अरबी ,फारसी को यही सोच के अपनाया था।तब मुझे कहाँ पता था कि ये *निंगोड़ी सौतन मेरा जीना हराम कर देगी।यही हुआ मेरा जीना हराम हो गया।*
800 वर्ष के दीर्घ संघर्ष से मैं क्षीणकायः कमजोर और बीमार हो गई।
*मेरे शब्द कोष तक में इन निगोड़ी सौतनों की घुस पैठ हो गई। दुख तब अधिक हुआ जब मेरे और सरस्वती के वरद पुत्रों ने इन्हे मान्यता भी दी।खैर।*
जीर्णावस्था में जब मुझे फिर से सेविका की आवश्यकता हुई तो विधना के विधान से फिर चूक होकर मुझे इस *अंग्रेजी भाषा को सेविका रूप में अपनानी पड़ी। सोचा सेवा करेगी सौतनों से बचाव भी होगा । क्या पता था यह और भी घातक सौतन बन जाएगी। आज चार सौ 400 वर्ष हुए इस नवेली सौतन ने तो मेरा गला घोंटने में कोई कोर कसर नहीं रखी।सखे!*
इसने तो मेरी सारी ही सम्पन्नता और व्यापकता छीन ली।
मेरे शब्दकोष में घुस पैठ कर ली। मुझे दोयम , पिछड़ी और पुरातन बताने वाली सौतन ने मेरे पुत्र *गद्य पद्य और छंद व प्रिय पुत्री कविता को संस्कार विहीन और श्रंगार विहीन* बनाने में भी कसर नहीं छोड़ी। दुखी हूँ मेरे और सरस्वती के वरद पुत्र इसका विरोध नहीं कर रहे। अपितु नया बदलाव कहकर शब्दों को मेरे कोष में जमा करते,मान्यता देते चलते है। क्यों सखे!
ऐसे तो एक दिन मेरा शब्द कोष ही रीत जाएगा।
अब क्या कहूँ, मेरा साहित्य कोष खूब सम्पन्न है। कवि परम्परा,लेखक सभी खूब तो है, थे भी ।
21 वीं सदी के आगाज ने सभी के साथ मुझे भी बौरा दिया।ताज्जुब है पिछली गलतियों से सबक न लेकर मै बौरा गई।मेरा सारा कुनबा ही बौरा गया सखे!
मैने सोचा लोग मुझे पुरातन और पिछड़ी कहेंगे मै भी भीड़ और भेड़ चाल के वशीभूत हो गई। *मैने इंटर नेट को नई सेविका समझ अपना लिया । इसने तो सखे--अपना रंग हाथों हाथ दिखाना शुरू भी कर दिया।*
*यह मेरी नई नवेली सौत वधु घर में क्या आई मेरे काव्य,महाकाव्य,ग्रन्थ, पुस्तकें, पत्रिका अखबार सभी को आलमारियों में कैद कर दिया। पुस्तके छपना बंद हो रहा है। नए काव्य महाकाव्य कालजयी कृतियाँ रचने पर मानो तो अघोषित रोक लगी हो ।*
*यहाँ तक की मेरे सम्पन्न साहित्य व शब्द कोष से अछूतों सा बर्ताव होने लगा है। कोई हाथ तक नहीं लगा रहा ।*
इस नई सौतन के इश्क में दीवानों ने मोबाइल नामक यंत्र विकसित कर लिया। आज बस बुद्धिजीवी उसी के गुलाम है । वही उनकी बीबी,बच्चे, माँ,बाप,बन्धु, मित्र ,समाज,परिवार, देश या वतन बनी हुई है। सौतन व उसके पुत्र के प्रति ऐसी दीवानगी,सखे!
देखकर मैं कितनी व्यथित हूँ। मन करता है आत्महत्या कर लूँ। पर यह पाप है ,अपराध है ,तो फिर एकांत वास में चली जाऊँ । भाई सखे ! लेखक , तुम्ही बताओ मैं कहाँ जाऊँ क्या करूँ?
असंतोष तो तब अधिक है जब मेरे भावि कर्णधार कवि लेखक वरद पुत्र सखा,संगी मेरी सौतन सुत मोबाइल पर दो या चार पंक्ति लिखकर खुद को कवि,लेखक प्रचारित करतें है। बड़ी पीड़ा होती है। इन नादान पूतों पर । पर भाई हे सखे ! अब कहाँ से लाऊँ ऐसे लेखक, ऐसे कवि जो डायरी भर जाने या स्याही बीतने तक कलम चलाकर दीर्घ कविता,खंडकाव्य ,काव्य या महाकाव्य रचें। फिर वे सुधि पाठक भी कहाँ से लाऊँ जो उनका अध्ययन पाठन व मनन करें । माता पिता तो जनमते ही शिशु को मेरी सौतन की कथित इंगलिश मीडियम में भरती कराने चलते है। फिर कहाँ से पैदा होंगे वे शरतचंद्र और निराला से आवारा मसीहा, तुलसी, सूर,कबीर दादू ,मीरा,रसखान,नानक से विरागी।
महावीर व गौतम से त्यागी युग प्रवर्तक?
चाणक्य जैसा दृढ़ प्रतिज्ञ,
*मेरी पुत्रियां जो आज राज्यों प्रांतो की राज्य भाषा होती मात्र जागीरदार सी बनी सिसक रहीं हैं। सखे!*
और क्या क्या गिनाऊँ भाई लेखक । मेरा सिर चकरा रहा है। अब सोच लो सखे लेखक/कवि/रचनाधर्मी🙏 श्रीकृष्ण बनकर मेरी लाज बचा सको तो🙏सखे!
अब पत्र को विराम देती हूँ।
🙏जय जन,🙏
🙏जय हिन्द🙏
. आपकी भगिनि/सखी/भाषा
. *हिन्दी (भाषा)*
. स्थायी पता :- आर्यावर्त
वर्तमान पता:--उत्तरी भारत
. 🌞🌞🌞🌞🌞🌞
✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, 303326
जिला:-- दौसा
राजस्थान
9782924479
🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पत्र~विधा
. 🐚 *सौतन* 🐚
मेरे प्रिय सखे रचनाधर्मी,
. अशेष स्नेहाशीष🙌🙌🙌
आज मै अपनी पीर कहानी पत्र द्वारा तुम्हें बता रही हूँ। क्योंकि राज सभा में द्रौपदी से भी बदतर स्थिति है मेरी वर्तमान में। अब तो बस श्रीकृष्ण की तरह तुम्हारा ही भरोसा शेष है। इसी आशा और विश्वास से पत्र लिख रही हूँ।ध्यान देना सखे।
मैं हिन्दी (भाषा) हूँ। माँ संस्कृत(भाषा) का मुझे अपार स्नेह व दुलार मिला है। इतना कि दुलार करते करते माँ अब जरावस्था में पहुँच गई । मै स्वतंत्र भारत की राष्ट्र भाषा बन गई हूँ। पर यह इतर बिन्दु है कि अभी तक शासन की ही दोगली नीति के कारण मै वह सम्मान प्राप्त नहीं कर पा रही जिसकी मैं स्वयं अधिकारिणी हूँ।
हालांकि देश की जनता मुझे राजरानी राजमाता सम मानती है पर सरकार के प्रतिनिधि अभी तक सरकारी कार्यालय, कोर्ट कचहरी संसद,विधान सभाओं में अनावश्क रूप से मेरी उपेक्षा करते रहते है।
यहाँ तक कि कुटिल स्वार्थी नेता भाषायी विवाद तथा , झगड़े भड़काने से भी नहीं चूकते।
खैर मैं राष्ट्र भाषा बनी,मेरी लिपि देवनागरी है। मैं स्वयं संसार की श्रेष्ठ सम्पन्न और सुन्दर भाषाओं में सुमान्य हूँ।
भारत वर्ष ही नहीं अपितु पड़ौसी देशों में भी मेरा व मेरी लिपि का बोलबाला है।
जहाँ प्रवासी भारतीय बसते हैं वहाँ उन दूरस्थ देशों मे भी मेरा विस्तार है।
आज मेरे कोष में सम्पन्न साहित्य है ,तथा साहित्य साधको की विशाल सूची है और खूब सम्पन्न शब्द कोष है।और भी सम्पन्नता होती पर इतिहास में हुई मेरी ही गलतियां आज तक मुझे सता रही है।सखे!
मेरा जन्म तो प्राचीन काल मे *हस्तिनापुर* में हुआ परन्तु आयु और यौवन के जोश में मै शीघ्र ही सबकी चहेती होती गई। मेरे चर्चे अखंड भारत में होने लगे। मुझे स्वयं पर गर्व होने लगा। मैने सोचा सेविका रख लूँ । बस यहीं से गलती शुरू हो गई। मैने उर्दू , अरबी ,फारसी को यही सोच के अपनाया था।तब मुझे कहाँ पता था कि ये *निंगोड़ी सौतन मेरा जीना हराम कर देगी।यही हुआ मेरा जीना हराम हो गया।*
800 वर्ष के दीर्घ संघर्ष से मैं क्षीणकायः कमजोर और बीमार हो गई।
*मेरे शब्द कोष तक में इन निगोड़ी सौतनों की घुस पैठ हो गई। दुख तब अधिक हुआ जब मेरे और सरस्वती के वरद पुत्रों ने इन्हे मान्यता भी दी।खैर।*
जीर्णावस्था में जब मुझे फिर से सेविका की आवश्यकता हुई तो विधना के विधान से फिर चूक होकर मुझे इस *अंग्रेजी भाषा को सेविका रूप में अपनानी पड़ी। सोचा सेवा करेगी सौतनों से बचाव भी होगा । क्या पता था यह और भी घातक सौतन बन जाएगी। आज चार सौ 400 वर्ष हुए इस नवेली सौतन ने तो मेरा गला घोंटने में कोई कोर कसर नहीं रखी।सखे!*
इसने तो मेरी सारी ही सम्पन्नता और व्यापकता छीन ली।
मेरे शब्दकोष में घुस पैठ कर ली। मुझे दोयम , पिछड़ी और पुरातन बताने वाली सौतन ने मेरे पुत्र *गद्य पद्य और छंद व प्रिय पुत्री कविता को संस्कार विहीन और श्रंगार विहीन* बनाने में भी कसर नहीं छोड़ी। दुखी हूँ मेरे और सरस्वती के वरद पुत्र इसका विरोध नहीं कर रहे। अपितु नया बदलाव कहकर शब्दों को मेरे कोष में जमा करते,मान्यता देते चलते है। क्यों सखे!
ऐसे तो एक दिन मेरा शब्द कोष ही रीत जाएगा।
अब क्या कहूँ, मेरा साहित्य कोष खूब सम्पन्न है। कवि परम्परा,लेखक सभी खूब तो है, थे भी ।
21 वीं सदी के आगाज ने सभी के साथ मुझे भी बौरा दिया।ताज्जुब है पिछली गलतियों से सबक न लेकर मै बौरा गई।मेरा सारा कुनबा ही बौरा गया सखे!
मैने सोचा लोग मुझे पुरातन और पिछड़ी कहेंगे मै भी भीड़ और भेड़ चाल के वशीभूत हो गई। *मैने इंटर नेट को नई सेविका समझ अपना लिया । इसने तो सखे--अपना रंग हाथों हाथ दिखाना शुरू भी कर दिया।*
*यह मेरी नई नवेली सौत वधु घर में क्या आई मेरे काव्य,महाकाव्य,ग्रन्थ, पुस्तकें, पत्रिका अखबार सभी को आलमारियों में कैद कर दिया। पुस्तके छपना बंद हो रहा है। नए काव्य महाकाव्य कालजयी कृतियाँ रचने पर मानो तो अघोषित रोक लगी हो ।*
*यहाँ तक की मेरे सम्पन्न साहित्य व शब्द कोष से अछूतों सा बर्ताव होने लगा है। कोई हाथ तक नहीं लगा रहा ।*
इस नई सौतन के इश्क में दीवानों ने मोबाइल नामक यंत्र विकसित कर लिया। आज बस बुद्धिजीवी उसी के गुलाम है । वही उनकी बीबी,बच्चे, माँ,बाप,बन्धु, मित्र ,समाज,परिवार, देश या वतन बनी हुई है। सौतन व उसके पुत्र के प्रति ऐसी दीवानगी,सखे!
देखकर मैं कितनी व्यथित हूँ। मन करता है आत्महत्या कर लूँ। पर यह पाप है ,अपराध है ,तो फिर एकांत वास में चली जाऊँ । भाई सखे ! लेखक , तुम्ही बताओ मैं कहाँ जाऊँ क्या करूँ?
असंतोष तो तब अधिक है जब मेरे भावि कर्णधार कवि लेखक वरद पुत्र सखा,संगी मेरी सौतन सुत मोबाइल पर दो या चार पंक्ति लिखकर खुद को कवि,लेखक प्रचारित करतें है। बड़ी पीड़ा होती है। इन नादान पूतों पर । पर भाई हे सखे ! अब कहाँ से लाऊँ ऐसे लेखक, ऐसे कवि जो डायरी भर जाने या स्याही बीतने तक कलम चलाकर दीर्घ कविता,खंडकाव्य ,काव्य या महाकाव्य रचें। फिर वे सुधि पाठक भी कहाँ से लाऊँ जो उनका अध्ययन पाठन व मनन करें । माता पिता तो जनमते ही शिशु को मेरी सौतन की कथित इंगलिश मीडियम में भरती कराने चलते है। फिर कहाँ से पैदा होंगे वे शरतचंद्र और निराला से आवारा मसीहा, तुलसी, सूर,कबीर दादू ,मीरा,रसखान,नानक से विरागी।
महावीर व गौतम से त्यागी युग प्रवर्तक?
चाणक्य जैसा दृढ़ प्रतिज्ञ,
*मेरी पुत्रियां जो आज राज्यों प्रांतो की राज्य भाषा होती मात्र जागीरदार सी बनी सिसक रहीं हैं। सखे!*
और क्या क्या गिनाऊँ भाई लेखक । मेरा सिर चकरा रहा है। अब सोच लो सखे लेखक/कवि/रचनाधर्मी🙏 श्रीकृष्ण बनकर मेरी लाज बचा सको तो🙏सखे!
अब पत्र को विराम देती हूँ।
🙏जय जन,🙏
🙏जय हिन्द🙏
. आपकी भगिनि/सखी/भाषा
. *हिन्दी (भाषा)*
. स्थायी पता :- आर्यावर्त
वर्तमान पता:--उत्तरी भारत
. 🌞🌞🌞🌞🌞🌞
✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, 303326
जिला:-- दौसा
राजस्थान
9782924479
🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪🐪
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Comments
Post a Comment