विधान- *मत्तगयंद सवैया*

भगण ×7+2गुरु, 12-11 वर्ण पर यति चार चरण समतुकान्त।

*मतगयंद सवैया*

कंकर-कंकर है शिव शंकर, शंकर देव बनें वह सारे।
नर्मद से निकले जब पत्थर, पूजन के अधिकार हमारे॥
भाव बिना भगवान कहाँ यह, सत्य कहूँ सब तथ्य विचारे।
साफ रखो हिय प्रेम बढ़े फिर, ये सुख सागर नाथ सहारे॥

 *संजय कौशिक "विज्ञात"*

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