*मदिरा सवैया*

मदिरा सवैया में 7 भगण (ऽ।।) + गुरु से यह छन्द बनता है, 10, 12 वर्णों पर यति होती है। 4 चरण समपाद रहेंगे

रूप शशांक कलंक दिखा, पर शीतल तो वह नित्य दिखा।
और प्रभा बिखरी जग में, इस कारण ही यह पक्ष लिखा॥
खूब कला बढ़ती रहती, तब जीत गई फिर चंद्र शिखा।
आँचल में सिमटी उसके, तब विस्मित देख रही परिखा॥

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Comments

  1. बहुत ही सुंदर रचना 👌👌👌लाजवाब शब्द चयन और अप्रतीम भाव ....सादर नमन आदरणीय 🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  2. वाह बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog