*विधवा का शव*

             18 मार्च को कल्पना सुबह प्रातः कालीन भ्रमण के लिए जा रही थी कि अचानक इंदिरा सोसाइटी के बाहर एक श्वेत वस्त्र धारी महिला को औंधे मुँह पड़े हुए देखा और उस महिला के निकट जाकर कल्पना ने उसे हिलाया-डुलाया तो वह महिला निश्चेष्ट मृत समान प्रतीत हुई। तब कल्पना ने कुछ घबराहट भरी आवाज में विधवा का शव... विधवा का शव... इंगित करते हुए वहाँ से गुजरने वाले लोगों का ध्यान इस महिला की तरफ खींचा।
धीरे-धीरे भीड़ एकत्रित हो गई, जिनमें से कुछ व्यक्ति उनके परिचित भी निकले जिन्होने बताया कि ये तो सुषमा जी हैं जिनके पति रामपाल 30 वर्ष पहले कार दुर्घटना में चल बसे थे और इकलौते पुत्र मयंक गत 35 वर्षों से विदेश में रहते हैं, अरबों की संपत्ति की मालकिन होते हुए भी सुषमा यहाँ अकेली ही रहती थी। इन्ही चर्चाओं के मध्य एकत्रित भीड़ में से किसी ने एम्बुलेंस को फोन कर दिया था तो किसी ने पुलिस को, दोनों ही 2 मिनट के अंतराल पर इंदिरा सोसाइटी के बाहर पहुँच गए और सुषमा जी के पार्थिव शरीर को ले गए।
             अब कल्पना भी प्रातः कालीन भ्रमण के लिए न जाकर वापिस अपने घर आ गई। और सुन्न अवस्था में सोचने लगी कि चल अचल अरबों की संपत्ति किस काम की? इतना सोचते हुए कल्पना ने अपने पति यशस्वी जो अमेरिका में रहते हैं। उनको फोन लगाया और करुण क्रंदन विलाप करते हुए कहा अभी आ जाओ जिस हालत में हो। कल्पना इतना ही कह पाई थी कि मस्तिष्क पर अधिक दबाव के चलते कल्पना भी मौन और निश्चेष्ट हो गई। 25 मार्च को जब होश आया तथा आँख खुली तो नया सवेरा हस्पताल के कमरा न. 1 में कल्पना ने यशस्वी को समक्ष पाया। जिसे देखते ही कल्पना-यशस्वी आलिंगन बद्ध हुए। द्रवित आँखों से विधवा के शव का दृश्य ओझल होता प्रतीत हुआ। उन खुशीयों के अश्रुओं को थामते हुए... अब कहीं नहीं जाना.... कहीं नहीं जाना... यहीं रहना... मेरे पास... बस... पर मन में कहीं न कहीं बैठा था छुपके वो विधवा का शव

                                                                                                        संजय कौशिक 'विज्ञात'

Comments

  1. खूबसूरत अहसास ,अनाम डर ।आसपास के घटनाक्रम कुछ ऐसे ही मस्तिष्कक पर हाबी होते हैं। 👌👌

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