★★★ *हिन्दी* ★★★
न भाषा कह अपमान करो, ये शब्दों की जननी है
हिन्दी है माथे की बिन्दी, ये मन को पावन करनी है !!
अ से ये अज्ञान मिटाकर, ज्ञ से ज्ञानी करती है
हिन्दी है ये वीर प्रतापी, नही किसी से डरती है !!
आँखे इसकी अलंकार है, गण है इसकी नासिका
दोहे इसकी चार भुजाएँ, इस पर जोर चला किसका !!
गाल गुलाबी बना सोरठा, चौपाई से कान बने
जिव्हा से है सब रस टपके, गीतों से है शान बने !!
देख गीतिका गले में बैठी, कुण्डलियाँ मुख बोली है
अक्षर का सबको दूध पिलाया, तब जाकर हिन्दी डोली है !!
सरसी जिसका पेट बना है, मनहरण हृदय धड़कता है
हिन्दी के इस सागर को कोई पार नही कर सकता है !!
रोम रोम है लावणीयाँ और पैरों में हर गीत रहे
ये हिन्दी है सबसे कहती हम सब इसके मीत रहे !!
देवनागरी नमन है करती शीश *नरेन* झुकाता है
हिन्दी के आशीष को पाने हर कोई दौड़ा आता है !!
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*हिन्दी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं* !!
***** *जय हिन्दी* ******
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नरेन्द्र डग्गा " *नरेन* "
बगड़ी नगर , पाली , ( राज.)
84268-93668
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