मुकतक

मुक्तक :

मेरा ये शून्य सा परिचय मैं इसका मान रखता हूँ।
नहीं कुछ कम अधिक इससे ये औसत शान रखता हूँ।
समझ क्यों शून्य की कीमत पृथक मुझसे नहीं दिखती।
अगर तू साथ दे मेरा अलग पहचान रखता हूँ।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

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