दोहा में त्रिकल का महत्व:- त्रिकल पंचकल पूर्व लें, उत्तम बने प्रवाह। पाठक पढ़ कर कह उठे, अच्छा है ये वाह॥ त्रिकल सहित लो दो जगण, रखो द्विकल का भार। चरण जगण अवरुद्धता, दोष मुक्ति का सार॥ तीन त्रिकल लेना नहीं, कभी एक ही साथ। दोहा लय श्रोता सुनें, खूब बजाएं हाथ॥ अगर त्रिकल ले रहे, किसी चरण में आप। उसे अकेला मत कहें, करें युग्ल आलाप॥ त्रिकल एक चौकल लिखा, लय बाधित का ज्ञान। खड़ा रहे अवरोध तो, कैसा शिल्प विधान संजय कौशिक 'विज्ञात'
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*!!नवरात्रा!!* ~दोहा छंद~ 🌹🔥🔥🔥👏🏻🔥🔥🔥🌹 हे! महिषासुर मर्दिनी, शूलधारिणी मात। महातपा सुरसुंदरी, नाम बड़े विख्यात।। मात भवानी अम्बिके, दुर्गा रूप अनेक। वन्दन माँ तेरा करूँ, चरणों माथा टेक।। शेरावाली आज तो, आना मेरे द्वार। शीश हाथ रख दीजिए, मेरी यही पुकार।। आदि भवानी आप हो, इस जग की करतार। हम सेवक भोले सभी, करिये नौका पार।। आओ माँ विनती करें, सजा आज दरबार। दर्शन दो माँ चंडिका, सबके कष्ट निवार।। नौ रातों के रूप को, करता कोटि प्रणाम। जीवन परहित में लगे, रहे यही बस काम।। हर बेटी दुर्गा समा, जग में बने महान। रहे सुरक्षित हर जगह, इतना दो वरदान।। मैं खोटा किंकर सदा, आप सुधारो काज। कहे 'सुमा' जग में रखो, माता मेरी लाज।। 🌹🔥🔥🔥👏🏻🔥🔥🔥🌹 *✍प्रजापति कैलाश 'सुमा'* ढिगारिया कपूर, मेहन्दीपुर बालाजी, दौसा, राजस्थान।
महात्मा गाँधी बापू *!!रोला छंद!!* ******************************** खुशी रहो सब आज, जयंती गाँधी जी की। मने जयंती संग, सदा ही शास्त्री जी की।। जन्मे वीर सपूत, यही था दिन वो पावन। जयतु भारती मात, दिए दो पूत लुभावन।। रखिये उनको याद, नमन करना मत भूलो। ले आजादी फूल, सदा मन में अब झूलो।। ऐसे वीर महान, हुए इस भारत भू पर। जीवन ये कुर्बान, किया मन में खुश हो कर।। चले सत्य के पंथ, अहिँसा के व्रत धारी। भगा फिरंगी लाज, बचाई तभी हमारी।। गाँधी जैसे पूत, बने सबके रखवाले। देश प्रेम हित छोड़, चले थे सब घरवाले।। लिया सत्य का साथ, करे आन्दोलन भारी। सुख साधन सब छोड़, हटाया सूट सफारी।। भारत माँ के काज, दिनों दिन कष्ट सहे। इसके खातिर देख, पिता जी जेल रहे।। थर थर काँपे राज, डरे अंग्रेजी सारे। देख सत्य का जोर, सभी वो मन से हारे।। जान गाय था विश्व, सत्य में ताकत भारी। बापू से ही आज, बनी पहचान हमारी।। भारत के सरताज, बने गाँधी जी प्यारे। हम सब ही संतान, पिता वो बने हमारे।। 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 *✍© प्रजापति कैलाश 'सुमा'* ढिगारिया कपूर, मेहन्दीपुर बालाजी, दौसा, राजस्थ
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