संचय

संचय


संवादहीनता
बढ़ रही है
बिखर रहे
मानवीय मूल्य
करना होगा
क्षमताओं का संचय
अनमोल है मानव मूल्य
मुझे मानव ही रहने दो
जो मानवता के गुण से
परिपूर्ण हो
देह है क्षणभंगुर
व्यापकता को अपनाओ
याद रहेंगे
सबके स्मरण में
यही मानवीय गुण
संचय करो अपने अंदर
मानवीय मूल्यों को
और बाँट दो इसे
सबके बीच !

अनिता मंदिलवार सपना
अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़ 

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