
*है कहाँ जिंदा ईमान अब ?* गर्दिशों में है पहचान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? कुरीतियाँ खड़ी मुँह उठाये सन्नाटे के मंजर क्यों छाये कहाँ से हौसले अब लाये है धुआँ धुआँ आसमान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? व्यस्त हैं आज यहाँ सभी बच्चे बचे नहीं भावना अब सच्चे दोस्ती, रिश्ते नाते सभी कच्चे अपमानित होता सम्मान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? घर में बेटियाँ लाचार क्यों बेटी पर हो अत्याचार क्यों बेटी से गलत वयवहार क्यों शैतान बनता क्यों इंसान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? अब वही जमाना रहा नहीं सच कहा किसी ने सुना नहीं सिलसिला आगे बढ़ा नहीं खोते होठों से मुस्कान अब है कहाँ जिंदा ईमान अब ? *अनिता मंदिलवार "सपना"*