अपने प्रिय जनों को समर्पित--- *अपने* सब मिलकर रहें, पूर्ण करें सब *काम*। *काम* विकारों से परे, *धाम* वही सुख *धाम* *धाम* वही सुख *धाम*, पुष्प सा होता *विकसित* *विकसित* हो परिवार, नहीं वे होते *व्यवसित* *व्यवसित* कवि के भाव, लगे हों मानो *तपने* *तपने* लगते गैर, शांति पाते हैं *अपने* संजय कौशिक 'विज्ञात' काम - कार्य, काम विकार धाम - घर , तीर्थ विकसित - खिला हुआ , विकास व्यवसित संस्कृत शब्द विशेषण से अर्थ क्रमानुसार - धैर्यवान , तत्पर बनते हैं संज्ञा से क्रमानुसार - छल, निर्धारण बनते हैं तपने - तपस्या, तप्त/ गर्म होना
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Showing posts from December, 2019
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अपने प्रिय जनों को समर्पित--- *अपने* सब मिलकर रहें, पूर्ण करें सब *काम*। *काम* विकारों से परे, *धाम* वही सुख *धाम* *धाम* वही सुख *धाम*, पुष्प सा होता *विकसित* *विकसित* हो परिवार, नहीं वे होते *व्यवसित* *व्यवसित* कवि के भाव, लगे हों मानो *तपने* *तपने* लगते गैर, शांति पाते हैं *अपने* संजय कौशिक 'विज्ञात' काम - कार्य, काम विकार धाम - घर , तीर्थ विकसित - खिला हुआ , विकास व्यवसित संस्कृत शब्द विशेषण से अर्थ क्रमानुसार - धैर्यवान , तत्पर बनते हैं संज्ञा से क्रमानुसार - छल, निर्धारण बनते हैं तपने - तपस्या, तप्त/ गर्म होना
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दोहा में त्रिकल का महत्व:- त्रिकल पंचकल पूर्व लें, उत्तम बने प्रवाह। पाठक पढ़ कर कह उठे, अच्छा है ये वाह॥ त्रिकल सहित लो दो जगण, रखो द्विकल का भार। चरण जगण अवरुद्धता, दोष मुक्ति का सार॥ तीन त्रिकल लेना नहीं, कभी एक ही साथ। दोहा लय श्रोता सुनें, खूब बजाएं हाथ॥ अगर त्रिकल ले रहे, किसी चरण में आप। उसे अकेला मत कहें, करें युग्ल आलाप॥ त्रिकल एक चौकल लिखा, लय बाधित का ज्ञान। खड़ा रहे अवरोध तो, कैसा शिल्प विधान संजय कौशिक 'विज्ञात'